क्यों नींद आती है दिन रात

नींद लेना बुरी बात नहीं है यह अच्छी बात है और बहुत जरूरी बात भी अनेक शोधों से सिद्ध हो चुका है कि यह शरीर के लिए जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है यादाश्त के लिए भी यदि हम दो दिन ना सोए तो दिमाग भन्ने लगता है यहां तक कि शरीर भी साथ देने को तैयार नहीं रहता

इस शरीर की अपने कुछ जरूरतें हैं हमें उन जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए इसे भोजन चाहिए पौष्टिक भोजन ताकि यह स्वस्थ रह सकें इसे नींद चाहिए पर्याप्त नहीं ताकि उसके मांस पेशियां और कोशिकाएं को आराम मिल सके इसे शारीरिक श्रम भी चाहिए ताकि या मजबूत बन सके इसी गतिशीलता चाहिए ताकि इसके सभी जोड़ जकड़ने से बच सके

मैं यह मानता हूं कि जिस तरह नींद ना आना एक समस्या है ठीक उसी तरह नींद का बहुत आना भी एक समस्या है हालांकि इन दिनों समस्याओं के बहुत से जैविकिए और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं लेकिन यह पाया गया है कि सबसे बड़ा कारण मनोवैज्ञानिक ही होता है जहां चिंता तनाव और दबाव आदि के कारण नींद गायब हो जाती है वही बहुत अधिक अनिश्चितता लापरवाही और उद्देश्यहीनता के कारण वह आने भी लगती है

डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक का यह मानना है कि एक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन लगभग 6 घंटे की नींद पर्याप्त होती है यह एक सामान्य निष्कर्ष है

हर एक व्यक्ति को अपनी मानसिक तथा शारीरिक कार्य पर निर्भर करता है नींद

उदाहरण के लिए गांधीजी केवल 4 घंटे सोते थे श्रीमती इंदिरा गांधी तो उनसे भी कम सोती थी पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम 3:30 से 4  घंटे सोते थे कहा जाता है कि आविष्कारक एडिशन तो कब सोते थे किसी को पता ही नहीं चलता था यह सभी व्यक्ति कम सोते थे इसलिए नहीं कि इन्हें नींद नहीं आती थी बल्कि इसलिए क्योंकि इनकी अपने काम करने के लिए ज्यादा समय की जरूरत थी और वह अपना यह समय नींद में कटौती करके प्राप्त कर लेते थे यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सभी मानशिक काम करते थे 

ऐसा नहीं था कि दुकान के काउंटर पर बैठकर कोई हल्का-फुल्का काम कर रहे हो और बीच-बीच में झपकी भी ले रहे हो इन सभी के काम मानसिकता वाले काम थे यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि यह लोग कभी भी किसी तरह के मानसिक बीमारी के शिकार नहीं हुए यहां तक कि कोई बहुत गंभीर शारीरिक बीमारी भी नहीं इसलिए तो इन सब को लंबी उम्र मिली तो नींद के बारे में इससे जो सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है.

वह यह है कि नींद दो प्रकार की होती है  जैविकिए नींद और मनोवैज्ञानिक ने यदि आप दिन भर अपना काम कर लेते हैं फिर चाहे वह मानसिक श्रम हो या मानसिक तो आप इस बात से नहीं बच सकते हैं कि रात में आपको नींद नहीं आएगी और गहरी नींद आएगी काम करने वाले को कभी भी ना तो नींद के ना आने की शिकायत होती है और ना ही नींद के बहुत आने की काम कर रहे हैं दिन भर मैं थक गया है जिस प्रकार जितनी अधिक भूख लगेगी आपको ना केवल उतने ही अधिक भोजन की जरूरत होगी बल्कि वह उतना ही अधिक स्वादिष्ट भी लगेगा

जभी के नींद यदि आप सचमुच में नींद ले रहे हैं तो यह अच्छा 6:30 घंटे में अच्छी तरह पूरी हो जाती है और यदि इसके बाद भी आपको नींद आ रही है तो इसके केवल दो कारण हो सकते हैं पहला तो यह है कि आपको गहरी नींद नहीं आती दूसरी यह कि आप एक विचित्र किस्म के मनोवैज्ञानिक नींद की बीमारी के शिकार हो गए हैं यह एक प्रकार का विचार है जिसने आप को बीमार बना दिया है कि सच तो यह है कि आपके शरीर को नींद की जरूरत नहीं है यह जरूरत आपके दिमाग को है दिमाग को इसकी जरूरत क्यों है यह प्रत्येक को उसके अपने ढंग से समझना पड़ेगा

जातक मैंने समझ झांकी इसके कुछ कारण होते हैं इसमें सबसे बड़ा कारण है जो काम हम करने जा रहे हैं उसमें हमारे रुचि नहीं है क्योंकि हमें वह करना पड़ता है इसलिए हम उसे कर रहे हैं हम जैसे कि अपने दिमाग को यह संकेत दे रहे हैं कि वैसे ही हमारे दिमाग का गर्दन ठीक उसी तरह फंसा कर झुक जाती है जिस तरह गर्मी के दिनों में बिना पानी दिए गए गमले से लगे फूल की गर्दन इसमें पानी दे दीजिए वह फिर से तन जाएगी उसका अल्सर अपन गायब हो जाएगा आप भी अपने काम में रुचि का पानी डाल दीजिए आपके भी दिमाग का गर्दन उत्साह भर जाएगा अब देखिए कि नींद गायब होती है या नहीं

यदि आप रात में 11:00 बजे सो जाते हैं तो आपको 5:00 बजे सुबह उठ जाना चाहिए लेकिन आप नहीं उठ पाते हैं क्योंकि उठकर पढ़ने का काम आपको बहुत भारी और उबाऊ लगता है लेकिन अब आपने एक फुटबॉल क्लब ज्वाइन कर लिया है आपको फुटबॉल खेलना अच्छा लगता है फुटबॉल खेलने के लिए आपको तैयार होकर 5:00 बजे ग्राउंड में पहुंचना है आप 4:30 बजे उठ जाते हैं पहले आप 5:00 बजे किसी के द्वारा उठाने पर भी नहीं उठते थे लेकिन अब आप बिना किसी के उठाए अपने आप ही आधा घंटा पहले और जाते हैं क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है यदि सोचेंगे तो बहुत आसानी से उत्तर ढूंढ लेंगे

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